क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: जब ऑर्डर कैंसिल करने पर Amazon को लगा 45,000 रुपए का फटका
सुप्रियो की कहानी हमें बताती है कि अगर कंज्यूमर अपनी जगह सही है और अपने हक के लिए लड़ने का जज्बा रखता है तो Amazon जैसी दिग्गज कंपनी को भी उसके आगे घुटने टेकने पड़ते हैं
ये कहानी हम सब को सबक देने वाली है.
ये कहानी हम सब को सबक देने वाली है.
एक बार मैंने Amazon से कार के टायर मंगाए. टायर डिफेक्टिव निकल गए. मैंने रिटर्न की अर्जी डाली. जो ऑर्डर डिलिवर होने में सिर्फ 3 दिन लगे थे उसी को पिक-अप करने में कंपनी ने 2 महीने लगा दिए. वो भी दसियों बार कंप्लेंट करने और ट्विटर पर आंदोलन छेड़ने के बाद. दूसरा तजुर्बा- मैंने Sale के दौरान डिस्काउंटेड प्राइस पर एक स्पीकर ऑर्डर किया. 15 दिन गुजर गए, Sale भी खत्म हो गई, लेकिन ऑर्डर नहीं पहुंचा. मैंने बार-बार पूछा तो कंपनी कहने लगी ‘ये ऑर्डर तो डिलिवर नहीं हो पाएगा, आप कैंसिल करके फ्रेश ऑर्डर कर दीजिए.’ दिक्कत ये थी कि फ्रेश ऑर्डर पर मुझे वो Sale वाली डिस्काउंडेट कीमत नहीं मिल रही थी. काफी दिनों की झिकझिक के बाद उसी प्राइस पर प्रोडक्ट पर डिलिवर हो पाया. तीसरा तजुर्बा- मैंने Amazon से 5 बनियान का सेट मंगाया. साइज का इशू हो गया. कंपनी रिटर्न तो दूर, एक्सचेंज करने के लिए भी तैयार नहीं है. वजह ये बताई गई कि अंडर गारमेंट जैसे कुछ सामान रिटर्न पॉलिसी में कवर नहीं होते. मैंने अपनी किस्मत मानकर सब्र कर लिया. ऐसे ढेरों वाकये ऑनलाइन शॉपिंग के साथ होते रहते हैं. मंगाया था कुछ, डिलिवर हुआ कुछ. पैकेज खोला तो प्रोडक्ट डैमेज्ड निकला. जो क्वॉलिटी फोटो में दिखी, असल प्रोडक्ट उसके मुकाबले घटिया निकला वगैरह वगैरह. ऐसे हालात में ज्यादातर लोग कंपनी के कस्टमर केयर या फिर ट्विटर पर अपना गुस्सा निकालते रहते हैं. लेकिन ये किस्सा उस छात्र का है जो कानून की पढ़ाई कर रहा था. उसने कानूनी लड़ाई लड़ी और Amazon को चारों खाने चित कर दिया. ये कहानी हम सब को सबक देने वाली है.
(Pic Source: LIVELAW)
190 रुपए का लैपटॉप, ऑर्डर कन्फर्म्ड और फिर Amazon की पलटी
मामला शुरू हुआ साल 2014 में. उड़ीसा में कानून की पढ़ाई कर रहे सुप्रियो रंजन महापात्रा ने Amazon पर एक ऐसा ऑफर देखा कि खुशी से उछल पड़े. एक लैपटॉप था जिसकी असल कीमत थी 23,499 रुपए और ऑफर प्राइस थी सिर्फ 190 रुपए. सुप्रियो ने फटाफट ऑर्डर प्लेस कर दिया. उनके पास ई-मेल पर कन्फर्मेशन भी आ गया और ये आश्वासन भी कि जल्द ही लैपटॉप उन्हें डिलिवर कर दिया जाएगा. लेकिन कुछ ही घंटों बाद Amazon के कस्टमर केयर डिपार्टमेंट से फोन आया. बताया गया कि ‘प्राइसिंग इशू’ की वजह से उनका ऑर्डर कैंसिल कर दिया गया है. सुप्रियो के मुताबिक ये सरासर धोखा था, वादाखिलाफी थी. उन्होंने हेल्पलाइन नंबर और ई-मेल के जरिए कस्टमर केयर से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद 17 जनवरी 2015 को उन्होंने Amazon को लीगल नोटिस भेजा, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ.
कंज्यूमर की शपथ और Online Shopping कंपनी को मुआवजे की चपत
सुप्रियो महापात्रा ठहरे कानून के विद्यार्थी. उन्होंने ठान लिया कि अपना हक लेकर रहना है. उन्होंने पहले डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटाया. फोरम में उन्हें जीत हासिल हुई. आदेश हुआ कि कंपनी 10,000 रुपए बतौर मुआवजा और 20,000 रुपए बतौर लिटिगेशन कॉस्ट कंज्यूमर को अदा करे. लेकिन सुप्रियो इससे संतुष्ट नहीं हुए. उन्हें लगा कि ये मुआवजा काफी कम है. उन्होंने ओडिषा स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन में मुआवजा बढ़ाने की अर्जी डाली. अर्जी में उन्होंने मानसिक पीड़ा का हवाला दिया. उन्होंने लिखा कि एक प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए उन्हें अर्जेंटली लैपटॉप की जरूरत थी, Amazon की गड़बड़ी के बाद मजबूरी में उन्हें दूसरा लैपटॉप खरीदना पड़ा. उन्होंने मांग उनके हर्जाने के साथ ही कंपनी से जुर्माना भी वसूला जाए ताकि आगे से वो ऐसी हरकत करने की हिम्मत न करे. सुप्रियो की मुहिम रंग लाई. कमीशन ने मानसिक प्रताड़ना के लिए 30,000 रुपए और दंड के तौर पर 10,000 रुपए समेत कंपनी को कुल 45,000 रुपए का भुगतान करने का हुक्म सुना दिया.
(Pic Source: LIVELAW)
कंज्यूमर कमीशन ने Amazon को माना ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ का दोषी
Livelaw.in के मुताबिक ओडिषा स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन के अध्यक्ष डॉ डीपी चौधरी ने कंपनी को आदेश दिया कि कंज्यूमर को जल्द से जल्द 45,000 रुपए का भुगतान किया जाए. अपने आदेश में कमीशन ने कहा ‘जब इतनी जानी मानी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट ने ऑन रिकॉर्ड बिक्री का विज्ञापन दिया और शिकायतकर्ता के ऑर्डर प्लेस करने के बाद उसे कन्फर्म भी किया तो दोनों पार्टियों के बीच सझौता पूरा हो गया. अगर कन्फर्मेशन से पहले ही कैंसिलेशन हो गया होता तो और बात होती.’ Amazon ने दलील दी कि ये समझौता एक थर्ड पार्टी के साथ था इसलिए उसकी जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन कमीशन ने कहा कि अगर सेलर को ई-कॉमर्स वेबसाइट पर सामान बेचने की छूट दी गई है तो ई-कॉमर्स वेबसाइट अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती. कमीशन ने साफ कहा कि ‘ऐसा ऑफर अपने प्लेटफॉर्म पर डालने के पहले ही Amazon को सोचना चाहिये था कि ऑर्डर आ गया तो डिलिवर हो पाएगा या नहीं. ऑर्डर कन्फर्म होने के बाद इससे पल्ला झाड़ने का कोई मतलब नहीं.’ Amazon पर हर रोज़ हज़ारों-लाखों लोग शॉपिंग करते हैं. जहां इतने बड़े लेवल पर काम हो रहा है वहां कुछ-कुछ गड़बड़ी हो जाना बड़ी बात नहीं. लेकिन सुप्रियो की कहानी हमें बताती है कि अगर कंज्यूमर अपनी जगह सही है और अपने हक के लिए लड़ने का जज्बा रखता है तो Amazon जैसी दिग्गज कंपनी को भी उसके आगे घुटने टेकने पड़ते हैं.
(लेखक ज़ी बिज़नेस हिन्दी डिजिटल के ए़डिटर हैं)
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05:44 PM IST