क़िस्सा-ए-कंज़्यूमर: टीवी का मशहूर चेहरा, अमेरिकी यूनिवर्सिटी और एसोसिएट प्रोफेसर की नौकरी वाला फ्रॉड
बाकायदा पोस्ट ऑफर की गई थी एसोसिएट प्रोफेसर की. लेकिन 6 महीने की चिट्ठी-पत्री के बाद पता चला कि उनके साथ खेल खेला जा रहा था. धोखाधड़ी का खेल.
फिशिंग. अपने साथ हुए फिशिंग फ्रॉड की पूरी रामकहानी निधि ने खुद ट्विटर पर साझा की है.
फिशिंग. अपने साथ हुए फिशिंग फ्रॉड की पूरी रामकहानी निधि ने खुद ट्विटर पर साझा की है.
भइया, अपना तो माथा घूम गया ये किस्सा सुनकर. इतनी सीनियर जर्नलिस्ट. सेलिब्रिटी एंकर. पत्रकारिता में कई दशक का अनुभव. मतलब, समझ तो ठीक-ठाक ही होगी उनकी. उन्हें भी लपेटे में ले लिया. जरा सोचिये कितना शातिर, कितना सॉलिड होगा जालसाजों का जाल. बाई दि वे, अगर आपको अब तक खबर नहीं पता तो पहले वो जान लीजिए. NDTV की सीनियर एंकर निधि राजदान (Nidhi Razdan) के साथ धोखा हो गया. बहुत बड़ा धोखा. उन्हें अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ऑफर मिला था. ऑफर कि वो आएं और यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म पढ़ाएं. बाकायदा पोस्ट ऑफर की गई थी एसोसिएट प्रोफेसर की. लेकिन 6 महीने की चिट्ठी-पत्री के बाद पता चला कि उनके साथ खेल खेला जा रहा था. धोखाधड़ी का खेल. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से तो उन्हें कुछ भेजा ही नहीं गया था. ये तो कोई गिरोह था जो बड़ी ही सफाई से उन्हें झांसा देकर उनका पर्सनल डाटा निकलवा रहा था. ये वो खेल था जिसे नाम दिया गया है- फिशिंग. अपने साथ हुए फिशिंग फ्रॉड की पूरी रामकहानी निधि ने खुद ट्विटर पर साझा की है.
I have been the victim of a very serious phishing attack. I’m putting this statement out to set the record straight about what I’ve been through. I will not be addressing this issue any further on social media. pic.twitter.com/bttnnlLjuh
— Nidhi Razdan (@Nidhi) January 15, 2021
अगर ये निधि राजदान के साथ हो सकता है तो किसी के साथ भी हो सकता है!
ये फिशिंग क्या बला है, किसी तरह कोई शख्स फिशिंग का शिकार होता है और फिशिंग का फंदा कितना खतरनाक हो सकता है इस पर भी बात करेंगे लेकिन पहले थोड़ा निधि के केस के बारे में और जान लेते हैं. 21 साल एनडीटीवी में गुजारने के बाद निधि ने जून 2020 में इस्तीफा दिया था. क्योंकि उन्हें ‘मूव ऑन’ करने की शानदार वजह मिल गई थी. उन्हें यकीन दिलाया गया था कि 3 महीने के भीतर यानी सितंबर 2020 तक वो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ जर्नलिज्म बन चुकी होंगी. लेकिन जैसा कि हम जानते हैं ये घनघोर कोरोना संकट का दौर था. तो निधि से कहा गया कि महामारी के चलते प्रोग्राम में थोड़ा चेंज है, अब उनकी क्लासेज जनवरी 2021 से होंगी. जाहिर है, यकीन न करने की कोई वजह नहीं थी. लेकिन कहीं न कहीं जिस तरह से इस पूरे केस को हैंडल किया जा रहा था उसे देखकर निधि का माथा ठनका. उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बड़े अधिकारियों से संपर्क किया. पता चला, उनकी तरफ से तो ऐसा कोई ऑफर नहीं है. ये सुनकर निधि के होश उड़ गए. पिछले 6 महीने की पूरी बातचीत अचानक उनकी आंखों के सामने रीप्ले होने लगी. उन्हें एहसास हुआ कि किस तरह उन्हें झूठे जाल में फंसाकर उनका पर्सनल डाटा, उनकी ई-मेल आईडी और सोशल मीडिया के डीटेल्स हथिया लिए गए थे. इतना ही नहीं, जालसाजों ने उनके डिवाइसेज तक का ऐक्सेस हासिल कर लिया था.
बेहद खतरनाक है ये फिशिंग का फंदा, आप भी रहिए सावधान
कोरोना काल में कई तरह तरह के फ्रॉड की खबरें सुनने को मिलीं लेकिन निधि का केस बहुत ही सनसनीखेज है. निधि तो फिलहाल पुलिस से लेकर तमाम अधिकारियों से बात रही हैं और अपराधियों के धरे जाने का इंतजार कर रही हैं लेकिन उनके साथ जो कुछ हुआ वो हर किसी को सबक देने वाला है. फिशिंग की स्पेलिंग पैसे तो Phishing है लेकिन ये इलेक्ट्रॉनिक जालसाजी कुछ-कुछ वैसे ही काम करती है जैसे हम Fishing करते हैं. यानी खतरे से अंजान मछलियों को जाल में फंसाना. इंसानों के केस में शिकार कह लीजिए. ये शिकार कभी किसी भरोसेमंद संस्था का मुखौटा लगाकर होता है तो कभी इश्क के जाल में फंसाकर. कभी नकली वेबसाइट या ई-मेल के जरिए फंसाने की कोशिश होती है तो कभी कोई हाइपरलिंक भेजकर धोखे से कोई फॉर्म भरवा लिया जाता है. जालसाजों का मकसद साफ होता है- आपके पैसों पर डाका डालना. एक तरीका तो ये होता है कि वो आपको भरोसे में लेकर आपसे कोई डोनेशन ले लेते हैं या फिर कोई कस्टम चार्ज भरवा कर गायब हो जाते हैं. लेकिन ज्यादातर मामलों फिशिंग अटैक करने वाले किसी भी तरह आपका पर्सनल डाटा हासिल करने की कोशिश करते हैं जैसे कि आपका नाम, जन्मतिथि, ई-मेल आईडी, पासवर्ड, मोबाइल नंबर, ऐड्रेस, बैंक अकाउंट नंबर, डेबिट या क्रेडिट कार्ड नंबर, एटीएम कार्ड की वैलिडिटी डेट वगैरह. ये वो जानकारियां हैं जिनकी मदद से कोई भी आपके खातों में सेंध लगा सकता है. निधि राजदान को भी उनका पर्सनल डाटा लेने के लिए ही जॉब ऑफर के जाल में फंसाया गया.
तो फिशिंग करने वाले जालसाजों से बचना कैसे है?
बहुत से तरीकों से होती है फिशिंग. लेकिन हमलावार कितना भी शातिर क्यों ना हो, अगर आपने अपने कॉमन सेंस के किले को अभेद्य बना लिया तो आपको कोई हरा नहीं सकता. आम तौर पर ये हमला इलेक्ट्रॉनिकली होता है. तो बचने के लिए कुछ सिंपल बातें याद रखें. कोई अंजान मेल या मैसेज है तो उसके लिंक पर क्लिक न करें. इंटरनेट पर काम करते हुए हुए कोई पॉप अप विंडो खुल जाए तो उस पर अपनी जानकारियां कभी न डालें. अपना बैंक अकाउंट नंबर, डेबिट या क्रेडिट कार्ड की डीटेल और पासवर्ड कभी, भी कहीं भी शेयर न करें. उन्हीं वेबसाइट्स पर भरोसा करें जो https:// से शुरू होती हों. और अंत में आज का सबक- किसी भी अंजान व्यक्ति या संस्था से संवाद हो तो उसे दूसरे जरियों से भी क्रॉस चेक करने की कोशिश करें. हालांकि ज्ञान देना आसान है. कोई सीधे केंब्रिज या हार्वर्ड जैसी यूनिवर्सिटी का रिप्रजेंटेटिव बनकर बात करे तो दिमाग चकरा ही जाएगा. लेकिन अपन कर ही क्या सकते हैं. निधि राजदान की कहानी से सबक ही तो ले सकते हैं.और ऑप्शन भी क्या है.
(लेखक ज़ी बिज़नेस हिन्दी डिजिटल के ए़डिटर हैं)
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08:18 PM IST